Monday, February 27, 2012

वक़्त ...

















पहले... 
तुम्हे देखते देखते 
रात हो जाया करती थी 
यूँ ही बैठे बैठे कुछ
बात हो जाया करती थी |

फिर...
मिटाया वक़्त ने सब कुछ इस तरह की 
सूनापन आँखें बयां करती है
जीना तो कब का छोड़ दिया
ज़िन्दगी पर साँसे दया करती है |

अब...
तुम्हे पता है 
तुम्हारे बिन, ये आँखें बहुत रोती है 
और बस तुम्हे याद करते करते ही सोती है |



16 comments:

  1. Beautiful. Loved every word of it!

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  2. बहुत सुन्दर...
    प्यारी रचना के लिए आपको बधाई
    god bless u dear.

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  3. अरे ! रुचि जी … !
    आप तो पुरानी ब्लॉगर हैं !


    पहले…
    तुम्हे देखते देखते
    रात हो जाया करती थी
    यूं ही बैठे बैठे कुछ
    बात हो जाया करती थी

    ईश्वर उन दिनों को लौटा दे … आमीन !


    अब…
    ये आंखें तुम्हारे बिना बहुत रोती है
    और बस तुम्हे याद करते करते ही सोती है

    कविता तो कविता है लेकिन…
    मन के भावों की सुंदर कविता का करुण समापन !

    शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. प्रेम विकलता का सहज उदगार !

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  5. बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति ,बहुत खूब लिखा है इस रचना के लिए आभार

    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है !
    सबसे पहले दक्ष को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें.!!
    Active Life Blog

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  6. Poignant but I loved the way you wrote last two lines...

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  7. फिर...
    मिटाया वक़्त ने सब कुछ इस तरह की
    सूनापन आँखें बयां करती है
    खूबसूरत अह्साशों से भरी बेहतरीन कविता प्रस्तुत की है आपने

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  8. मित्रवर
    आप से निवेदन है कि एक ब्लॉग सबका
    ( सामूहिक ब्लॉग) से खुद भी जुड़ें और अपने मित्रों को भी जोड़ें... शुक्रिया
    आप भी सादर आमंत्रित हैं,

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  9. यूँ ही बैठे बैठे कुछ
    बात हो जाया करती थी |

    अच्छी लगी आपकी कविता. मन को छूने वाली.

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  10. wow.. so intense.. I just loved the killer line "Zindagi pe saanse daya karti hai"..

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  11. और फिर सपने भी तो उसी के आते हैं!! :)

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  12. "तुम्हारे बिन, ये आँखें बहुत रोती है
    और बस तुम्हे याद करते करते ही सोती है " I liked these line very much...You wrote this poem very nicely:)

    Keep writing..:)

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