आज वक़्त क्यों इस मोड़ पर ले आया
क्यों आज अपने ही आप पर तरस आया
क्यों ऐसी ज़िन्दगी, आज जी रहे है
क्यों अपने ही हाथ जहर का घुट पी रहे है
न कुछ कहना, न है किसी को कुछ बताना
बस चाहती है ज़िन्दगी खुद से दूर जाना
जाकर सबसे दूर, बस इतना है मेरा कहना
जब भी मेरी याद आये, एक हंसी अपने चेहरे पर रखना |
न कुछ कहना, न है किसी को कुछ बताना
ReplyDeleteबस चाहती है ज़िन्दगी खुद से दूर जाना
एक सार्थक प्रयास ......दिल के जज्बात तो बयां कराती ही है ये रचना .....कही कही निराशा की झलक ......कुछ जिन्दगी जीने की बात होनी चाहिए ....
हो के मायूस न यूँ शाम शे ढलते रहिये |
जिन्दगी भोर के सूरज से निकलते रहिये ||
एक ही पाव पे ठहरोगे तो थक जाओगे |
धीरे धीरे ही सही रह पे चलते रहिये ||
सादर बधाई रूचि जी ........हिंदी रचना लिखते रहिये ........क्यों की एस भाषा में भावनाओं को सूक्षतम स्तर प्रकट किया जा सकता है ...अन्य भाषाओँ में ऐसा संभव ही नहीं है.